संसद सर्वोच्च है !! पर उससे भी सर्वोच्च हमारी जनता है !!
क्या उनके पास समय की कमी थी !!
नहीं वो यह चाहते ही नहीं की एक स्वतंत्र लोकपाल आए !! क्योंकि इससे उनके क्रिया-कलापों में किये जा रहे घोटाले सामने आ जाएंगे!!
हमें हरपल की भागीदारी वाली लोकतंत्र चाहिए !! न की ५ साल वाली तानाशाही वाली !!
क्या प्रधानमंत्री , संसद सदस्य और एस पी के नीचे काम करने वाले सदस्य अमृत पी कर आए घोटाला करने के लिए !!
वित्त मंत्रालय की जानकारियों के अनुसार २००३ की तुलना में आज हमारे ऊपर तिगुना कर्जा है !!
सारे विकास कर्जों से लिए पैसे पर हुआ है दोस्तों !!
इसी तरह जब देश की आजादी के समय कोई सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाता था तो उसको मुर्ख कहा जाता था !! पर उस साम्राज्य के सूर्य भी अस्त हुआ था !!
सही कहते हैं सब भगत, गाँधी, शिवाजी चाहते हैं पर पडोसी के घर और फिल्मों में !!
मैं यह नहीं कहता की किसी की देखा-देखी हल्ला मचाओ, बस एक बार संविधान, सरकारी लोकपाल और जन-लोकपाल पढ़ो, फिर निर्णय लेना की क्या करना !!
प्रधानमंत्री कहते हैं -- अन्ना का रास्ता ठीक नहीं है? दोस्तों आजादी की लड़ाई में कई रस्ते थे पर सबका मंजिल एक था !! अन्ना ने एक मुद्दे को अहिंसक तरीके से अपनी माग रखी है !! अन्ना नहीं कहते की जन लोकपाल लागू करो !! मांग यह है की संसद में जनलोकपाल भी रखो और उसपर चर्चा करो !! क्या यह मांग करना असंवेधानिक है ?
उठो , जागो, आगे बढ़ो !!
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