पिछले हफ्ते कार्यालय में हिन्दी पखवाड़ा के अंतर्गत वाद-विवाद प्रतियोगिता हुई | वाद-विवाद का शीर्षक था " विज्ञापन से लाभ कम हानि ज्यादा " |
मैं भी इस प्रतियोगिता में सम्मलित हुआ | मैंने शीर्षक के पक्ष में बोला | मुझे ४ मिनट मिला अपना पक्ष रखने के लिए | मैंने अपना पक्ष कुछ इस प्रकार रखा :-
महंगाई :- विज्ञापन वस्तुओं के दाम को प्रभावित करती हैं | बढ़िया विज्ञापन के लिए निर्माता काफी पैसा व्यय करता है | जिसकी भरपाई वह वस्तु की कीमत बढ़ा कर करता है | इस कारण चीज़ों के दाम बढ़ बढ़ जाते हैं |
अश्लीलता :- वर्तमान में विज्ञापन के द्वारा अश्लीलता बढ़ी है | एक सीमेंट के प्रचार के लिए अधनंगी युवती को दिखाने का क्या प्रयोजन है ? क्यों विज्ञापन में एक युवक के पीछे कई युवतियों को भागते हुए दीखाया जाता है?
यह सब विज्ञापन अश्लीलता फैलाते हैं |
मिथ्व्ययिता : विज्ञापन देखने के बाद लोगों को लगता है की विज्ञापन में दिखायी गई वस्तु उनके पास भी होनी चाहिए | इस चक्कर में वह अपना धन अनावश्यक वस्तुओं पर व्यय कर देते हैं |
अंधी दौड़ : - निर्माता वर्ग बाज़ार में अपनी पकड़ एक दूसरे से ज्यादा बनाने के लिए अपने विज्ञापनों में अन्य निर्माताओं की बुराई करने लगते है | एक दूसरे के खिलाफ विज्ञापन की रैली बनाने की अंधी दौड़ में उपभोक्ता वर्ग की जेब काटते हैं |
छोटी कंपनियों का पतन :- बढ़िया स्तर पर विज्ञापन न कर पाने के अभाव से छोटे और मझले निर्माता वर्ग का उत्पाद बाज़ार में नहीं बिक पाता है | धीरे-२ एन इकाइयों का या तो पतन हो गया या बड़े निर्माता से काम ले कर अपना धंधा पानी चला रहे हैं | आम तौर पर हमारी स्वदेशी निर्माता धन के अभाव के कारण बड़ी विदेशी कंपनियों को कड़ी टक्कर नहीं दे पा रही हैं |
सामाजिक प्रदुषण :- गलती और भूल के अंतर को मिटाना | कुछ उत्पादों के विज्ञापनों में दर्शकों को बताया जाता है की आप से जो हुआ है वह गलती नहीं है , वह तो भूल है और इस भूल को सुधारने के लिए आप हमारे उत्पाद का इस्तेमाल करें | विज्ञापनों का यह रूप समाज में गलत सन्देश और सामाजिक प्रदुषण फैला रहा है |
मानकों का अभाव :- विज्ञापनों में उत्पादों के मानकों के सम्बन्ध में बहुत कम या ना के बराबर जानकारी दी जाती है |
विज्ञापन का महत्व हमारे जीवन में ठीक उसी तरह है जैसे भोजन में आचार | कम और लाभकारी |
विज्ञापन होने चाहिए, पर एक संशोधित रूप में जो समाज को भ्रमित न करें |
अक्सर घर के सदस्य उसी उत्पाद को खरीदने की जिद करने लगते है जिनका उन्होंने विज्ञापन देखा होता है | जबकि उसी उत्पाद के कई बेहतर विकल्प बाज़ार में मौजूद हैं | इस कारण से हमें अपनी जेब जरुरत से ज्यादा ढीली करनी पड़ती है |
कुछ लोगों ने कहा के आपको अच्छे-बुरे की समझ होनी चाहिए | दोस्तों सिर्फ हम ही विज्ञापन नहीं देखते | हमारे परिवार और समाज का बहुत बड़ा वर्ग जो अभी परिपक्व नहीं हुआ है वो भी इन विज्ञापनों को देखता है |
आज के दौड़-भाग के युग में हमारे पास अपने छोटे भाई-बहनों को अच्छी बातें बताने का समय तो है नहीं, फिर हम उन्हें वर्तमान समय में विज्ञापन से दिए जा रहे गलत संदेशो से कैसे बचाएँ ?
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-- आपका मनोज :)
बहुत अच्छे मनोज भाई!!!
जवाब देंहटाएंbahot acha h isse bachon ko bhi sikhne ko milta h
जवाब देंहटाएंawsme
जवाब देंहटाएंthnkx for help me
जवाब देंहटाएंnice 1
जवाब देंहटाएंThank yaar mera kaaaam ho gaya
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संदीप ☺
हटाएंThank you very much 😊😊
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंShukriya mera kaam ho gaya
जवाब देंहटाएंthnkx too much par saral bhasha per likhte toh or bhi aacha hota veryyy veryyy veryyyy gooooooooooog
जवाब देंहटाएंThis Is An great Job .
जवाब देंहटाएंThanks bro for helping me
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