जरा हट के !!

आज सुबह-सुबह टहलते समय एक महिला को पुष्प तोड़ते देख मुझे लगा -

कितनी अजीब बात है हम एक सजीव पौधे से उसकी वस्तु छीनकर एक निर्जीव मूर्ति जिसको हम सजीव मानते हैं और हम उसमे भगवान् खोजते हैं को अर्पण कर देते हैं |

क्या हम उस पौधे में ही भगवान् नहीं ढूंड सकते ?

आपकी राय क्या है ?

1 टिप्पणी:

  1. अगर आप ईसी तरह से सोचते रहे तो अंत में जैन ऋषियों की तरह मुंह पर पट्टी बांधे नजर आयेंगे :-P

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