एक खबर :
कश्मीर में जनमतसंग्रह हो: पाकिस्तान
उसका जवाब :
भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में जनमत संग्रह हो कि लोगों को किस देश में रहना है|
शराबी
मुझसे कुछ लोगों ने पूछा की तुम बीयर क्यों पीते हो ? जवाब में मुझे साहिर की यह नज्म याद आ गई :--
गम इस कदर बढ़े की में घबरा के पी गया |
इस दिल की बेबसी पे तरस खा कर पी गया |
ठुकरा रहा था मुझको बड़ी देर से जंहा |
मैं आज सब जंहा को ठुकरा के पी गया ||
यह जवाब मुझे काफी अच्छा लगा | वैसे मैं इतना बड़ा पियक्कड़ नहीं हूँ ;) ||
हरिवंश जी ने भी तो कहा है --
बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद , मेल कराती मधुशाला ||
गम इस कदर बढ़े की में घबरा के पी गया |
इस दिल की बेबसी पे तरस खा कर पी गया |
ठुकरा रहा था मुझको बड़ी देर से जंहा |
मैं आज सब जंहा को ठुकरा के पी गया ||
यह जवाब मुझे काफी अच्छा लगा | वैसे मैं इतना बड़ा पियक्कड़ नहीं हूँ ;) ||
हरिवंश जी ने भी तो कहा है --
बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद , मेल कराती मधुशाला ||
कुछ इस तरह
ख़ुशी आती है तो जी भर कर हँस लेता हूँ |
गम आता है तो जी भर कर रो लेता हूँ ||
कुछ इस तरह मैं अपनी जिंदगी जी लेता हूँ ||
गम आता है तो जी भर कर रो लेता हूँ ||
कुछ इस तरह मैं अपनी जिंदगी जी लेता हूँ ||
मैं क्या करना चाहता हूँ
मैं वो नहीं करना चाहता हूँ जिससे दुनिया मेरी मुट्ठी में आ जाए,
मैं वो करना चाहता हूँ जिससे लोग मुझे अपनी बाँहों में भर लें ||
मैं वो करना चाहता हूँ जिससे लोग मुझे अपनी बाँहों में भर लें ||
शांत किनारे से मिल जाऊं
लहरों से लड़ने वाला मुसाफिर हूँ मैं,
दरिया को पार करने वाला मुसाफिर हूँ मैं ||
फिर भी एक शांत किनारे से मिल जाऊं मैं,
यह आरजू रखता हूँ मैं ||
दरिया को पार करने वाला मुसाफिर हूँ मैं ||
फिर भी एक शांत किनारे से मिल जाऊं मैं,
यह आरजू रखता हूँ मैं ||
मुस्कान
गम के अंधेरों से निकालकर तुझे खुशी के उजियारे में ले जाना चाहता हूँ |
ऐ दोस्त मैं तेरे मुरझाए चहरे पर खुशी की मुस्कान लाना चाहता हूँ ||
ऐ दोस्त मैं तेरे मुरझाए चहरे पर खुशी की मुस्कान लाना चाहता हूँ ||
जरा हट के !!
आज सुबह-सुबह टहलते समय एक महिला को पुष्प तोड़ते देख मुझे लगा -
कितनी अजीब बात है हम एक सजीव पौधे से उसकी वस्तु छीनकर एक निर्जीव मूर्ति जिसको हम सजीव मानते हैं और हम उसमे भगवान् खोजते हैं को अर्पण कर देते हैं |
क्या हम उस पौधे में ही भगवान् नहीं ढूंड सकते ?
आपकी राय क्या है ?
कितनी अजीब बात है हम एक सजीव पौधे से उसकी वस्तु छीनकर एक निर्जीव मूर्ति जिसको हम सजीव मानते हैं और हम उसमे भगवान् खोजते हैं को अर्पण कर देते हैं |
क्या हम उस पौधे में ही भगवान् नहीं ढूंड सकते ?
आपकी राय क्या है ?
सदस्यता लें
संदेश (Atom)