जिंदगी

पिछले सफ़र में कई जिन्दगीयों  से मिला !

सम्मान से चलने वाली !
अभिमान से चलने वाली !
धमक से चलने वाली !
चमक से चलने वाली !
लाचारी से चलने वाली !
दुस्वरियों से चलने वाली  !
सीट के नीचे  सोने वाली !
पैरों तले बैठे सफ़र करने वाली !
भीख से चलने वाली !
पानी के लिए भटकने वाली !
बैलगाड़ी से चलने वाली !
सड़क पर चलने वाली !
रेल में चलने वाली !
हवा में चलने वाली !
जिंदगी !!


क्या ६० बरस हो गए हैं हमें आज़ाद हुए ?

वो बांद्रा पूर्व लोकल टिकट खिड़की के नीचे बैठी भीख मांगती नन्ही बच्ची की तस्वीर मेरे दिमाग में बार बार आ रही है !

मन में बस यही सवाल है : क्या ६० बरस हो गए हैं हमें आज़ाद हुए ?