विद्यालय बनाम शौचालय और देवालय
पिछले कुछ दिनों से देश की राजनीति में शौचालय बनाम देवालय को ले कर तगड़ी बयानबाजी चल रही है। हर नेता अपने आप को इस तरह पेश कर रहा है की जैसे वो शौचालय को ज्यादा महत्त्व दे कर बहुत बड़ा कार्य कर रहा है। कोई कहता है की हमने तो यह पहले ही कहा था। मानो देशवासियों पर अपना अहसान जाता रहा हो ! एक बार तो ऐसा लगा की कितनी सही बात कर रहे हैं हमारे प्रिय नेतागण। कितने धर्मनिरपेक्ष विचार हैं - देवालय से पहले शौचालय। कुछ विचार करने के बाद पता चला जैसे कुटिल व्यापारी अपने बेकार उत्पाद को बाज़ार में बेचने के लिए लुभावनी स्कीम प्रस्तुत करता है ठीक उसी प्रकार हमारे तथाकथित आदर्श नेता भी अपनी और अपने दल की काली करतूतों को छुपाने के लिए लुभावनी स्कीम प्रस्तुत कर रहे हैं।
असल मैं गलती हमारी ही है की हम नेताओं को समझ नहीं पाते और कभी समझ पाते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है। वो मान्यवर अपनी सामान्य जिन्दगी संपन्न कर अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए अकूत सम्पत्ति छोड़ कर इस दुनिया से सम्मानपूर्वक विदा ले लेते हैं।
आज सुबह टहल रहा था तो घर के समीप में एक मंदिर पर मेरी नजर पड़ी। मंदिर का २ वर्ष पहले ही जीर्णोधार हुआ है। बहुत सुंदर है यह मंदिर। मंदिर देखकर लगता है की यहाँ के लोग बहुत ही सम्पन्न हैं और बहुत धार्मिक हैं। भव्यता देख कर कह सकते हैं की मंदिर में विराजमान देवता भी बड़े कृपालु हैं। आजकल इस मंदिर को और भव्य बनाया जा रहा है। मंदिर के प्रांगन में सफ़ेद रंग के कीमती पत्थर लगाने का कार्य चल रहा है। राह से गुजरता हर कोई जैसे ही मंदिर के सामने आता या तो मंदिर के अन्दर जा कर अपने देवता के समक्ष शीश झुकाता या मेरी तरह बाहर से ही शीश झुका कर अपने गंतव्य के लिए चलने लगता।
मन बहुत हर्षित था। फिर अचानक नजर मंदिर के ठीक बगल नीले पन्नी से ढके ईमारत पर गई। समीप जा कर देखा तो पाया की यह ईमारत सरकारी प्राथमिक विद्यालय की है। ऐसा लग रहा था जैसे किसी आलीशान बंगले के पास किसी गरीब का टूटा-फूटा झोपड़ा। प्राथमिक विद्यालय की तरफ तो शायद ही कोई देखता होगा। उसकी हालत ठीक वैसे ही थी जैसे किसी रेल और सड़क किनारे रहने वाले लोग, जिनको अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
मन बहुत खिन्न हो गया यह सब देख कर। आसपास कई छोटे बड़े निजी विद्यालय खुल गए हैं। पर गरीब और मध्यम वर्ग की पहुँच से लगभग बाहर। किसी तरह अगर दाखिला मिल भी जाता है तो तमाम उम्र फीस की रकम जुटाने में घिस जाती है। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की ऐसी दयनीय हालत देख कर तो गरीब भी अपने बच्चों को वहाँ नहीं भेजना चाहेगा।
वापस आते हैं हम अपने देवताओं यानी नेताओं पर। अरे! आप तो नाराज हो गए। सच ही तो कह रहा हूँ लोकतान्त्रिक व्यवस्था में नेता ही हमारे देवता हैं, जनता का सुख दुःख सब नेता के हाथ में होता है। आज के युग में तो यही माई-बाप हैं। वैसे भी वर्तमान में देवताओं का हमारे युग में अवतार न लेने के पीछे हमने बहुत तर्क सुने हैं - कलयुग के अंत में जब पाप का घड़ा भर जायेगा तब देवता अवतरित होंगें, वगेरह वगेरह। यह सुन कर मुझे बहुत ख़ुशी होती है की अभी हमारे समाज में उतना पाप नहीं है जितना देवताओं की उपस्थिति काल में होता है। अब अवतार कब लेंगे इसका इन्तजार करने से कहीं बेहतर हैं आपस में, एक दूसरे को देवता समान मानना और किसी एक को चुन कर नेता बना देना। अच्छी बात यही है की हम पाँच साल बाद देवता मने नेता बदल सकते हैं। अच्छा है न ! सवाल यह है की हम कितने सक्षम है देवता और दानव पहचानने में ?
अब आते हैं इस सवाल पर की कौन पहले शौचालय या मंदिर ? देखा! खा गए न गच्चा। दरसल यही वो पॉपुलर स्कीम हैं जिसमे हमें कुटिल व्यापारी ललचाते हैं। असल में यह चाहिए तो पर यह इतने महत्वपूर्ण विषय नहीं होने चाहिए हमारे देवताओं मने नेताओं के लिए। इनका इंतजाम तो हर कोई अपने लिए से कर सकता हैं। पर विद्यालय ? क्या हर कोई विद्यालय अपने घर में बना सकता है ? बना भी लिया तो क्या वो विद्यालय कहलायेगा ?
हमें हर स्तर पर अच्छे ,सस्ते और टिकाऊ विद्यालयों की जरुरत है , है की नहीं , बताइए ?
मेरी राय में हमारे समाज को सबसे पहले अच्छे विद्यालय चाहिए फिर शौचालय और देवालय। अच्छे विद्यालय होंगे तो भविष्य के नेता भी अच्छे होंगे। अब गारंटी मत मांगने लगिए मुझसे! गारंटी माँगनी है तो उनसे मांगो जिनको आप नेता बनाओगे। यह आपको तय करना है की आपको क्या चाहिए।
--
आपका
मनोज
असल मैं गलती हमारी ही है की हम नेताओं को समझ नहीं पाते और कभी समझ पाते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है। वो मान्यवर अपनी सामान्य जिन्दगी संपन्न कर अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए अकूत सम्पत्ति छोड़ कर इस दुनिया से सम्मानपूर्वक विदा ले लेते हैं।
आज सुबह टहल रहा था तो घर के समीप में एक मंदिर पर मेरी नजर पड़ी। मंदिर का २ वर्ष पहले ही जीर्णोधार हुआ है। बहुत सुंदर है यह मंदिर। मंदिर देखकर लगता है की यहाँ के लोग बहुत ही सम्पन्न हैं और बहुत धार्मिक हैं। भव्यता देख कर कह सकते हैं की मंदिर में विराजमान देवता भी बड़े कृपालु हैं। आजकल इस मंदिर को और भव्य बनाया जा रहा है। मंदिर के प्रांगन में सफ़ेद रंग के कीमती पत्थर लगाने का कार्य चल रहा है। राह से गुजरता हर कोई जैसे ही मंदिर के सामने आता या तो मंदिर के अन्दर जा कर अपने देवता के समक्ष शीश झुकाता या मेरी तरह बाहर से ही शीश झुका कर अपने गंतव्य के लिए चलने लगता।
मन बहुत हर्षित था। फिर अचानक नजर मंदिर के ठीक बगल नीले पन्नी से ढके ईमारत पर गई। समीप जा कर देखा तो पाया की यह ईमारत सरकारी प्राथमिक विद्यालय की है। ऐसा लग रहा था जैसे किसी आलीशान बंगले के पास किसी गरीब का टूटा-फूटा झोपड़ा। प्राथमिक विद्यालय की तरफ तो शायद ही कोई देखता होगा। उसकी हालत ठीक वैसे ही थी जैसे किसी रेल और सड़क किनारे रहने वाले लोग, जिनको अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
मन बहुत खिन्न हो गया यह सब देख कर। आसपास कई छोटे बड़े निजी विद्यालय खुल गए हैं। पर गरीब और मध्यम वर्ग की पहुँच से लगभग बाहर। किसी तरह अगर दाखिला मिल भी जाता है तो तमाम उम्र फीस की रकम जुटाने में घिस जाती है। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की ऐसी दयनीय हालत देख कर तो गरीब भी अपने बच्चों को वहाँ नहीं भेजना चाहेगा।
वापस आते हैं हम अपने देवताओं यानी नेताओं पर। अरे! आप तो नाराज हो गए। सच ही तो कह रहा हूँ लोकतान्त्रिक व्यवस्था में नेता ही हमारे देवता हैं, जनता का सुख दुःख सब नेता के हाथ में होता है। आज के युग में तो यही माई-बाप हैं। वैसे भी वर्तमान में देवताओं का हमारे युग में अवतार न लेने के पीछे हमने बहुत तर्क सुने हैं - कलयुग के अंत में जब पाप का घड़ा भर जायेगा तब देवता अवतरित होंगें, वगेरह वगेरह। यह सुन कर मुझे बहुत ख़ुशी होती है की अभी हमारे समाज में उतना पाप नहीं है जितना देवताओं की उपस्थिति काल में होता है। अब अवतार कब लेंगे इसका इन्तजार करने से कहीं बेहतर हैं आपस में, एक दूसरे को देवता समान मानना और किसी एक को चुन कर नेता बना देना। अच्छी बात यही है की हम पाँच साल बाद देवता मने नेता बदल सकते हैं। अच्छा है न ! सवाल यह है की हम कितने सक्षम है देवता और दानव पहचानने में ?
अब आते हैं इस सवाल पर की कौन पहले शौचालय या मंदिर ? देखा! खा गए न गच्चा। दरसल यही वो पॉपुलर स्कीम हैं जिसमे हमें कुटिल व्यापारी ललचाते हैं। असल में यह चाहिए तो पर यह इतने महत्वपूर्ण विषय नहीं होने चाहिए हमारे देवताओं मने नेताओं के लिए। इनका इंतजाम तो हर कोई अपने लिए से कर सकता हैं। पर विद्यालय ? क्या हर कोई विद्यालय अपने घर में बना सकता है ? बना भी लिया तो क्या वो विद्यालय कहलायेगा ?
हमें हर स्तर पर अच्छे ,सस्ते और टिकाऊ विद्यालयों की जरुरत है , है की नहीं , बताइए ?
मेरी राय में हमारे समाज को सबसे पहले अच्छे विद्यालय चाहिए फिर शौचालय और देवालय। अच्छे विद्यालय होंगे तो भविष्य के नेता भी अच्छे होंगे। अब गारंटी मत मांगने लगिए मुझसे! गारंटी माँगनी है तो उनसे मांगो जिनको आप नेता बनाओगे। यह आपको तय करना है की आपको क्या चाहिए।
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आपका
मनोज
बाबा लोगों के चक्कर में दुर्गति
पता नहीं क्यों पर बहुत तरस आ रहा है उन लोगों पर तो आशाराम की पूजा करते थे । अपने घर के मंदिरों में आशाराम की फोटो के आगे शीश झुकाते थे ! आशा करता हूँ की वो सभी इस सदमे से जल्दी उबर जायेंगे और फिर कभी इन बाबा जैसे लोगों के चक्कर में नहीं पड़ेंगे । यह उन सभी लोगों के लिए भी संकेत है जो अपने कर्म से ज्यादा भरोसा इन तथाकथित बाबा लोगों में करते हैं ।
नौकरी नहीं मिली, नौकरी सही नहीं चल रही, मनचाहा प्रेमी न मिलना, शादी नहीं हुई, शादी में अनबन, संतान का न होना, संतान का अस्वस्थ्य होना , मानसिक स्थिति सही न होना इत्यादि इत्यादि कारण मिलेंगे जिसमे आपको इन बाबा के शरण में जाने के लिए प्रेरित किया जायेगा ! मंदिरों, मस्जिदों , गिरजाघरों और गुरुद्वारों में यह बाबा लोग अत्याधिक पाए जाते हैं !
उनके उपाय भी काफी रोचक होते हैं , जैसे फला दिन यह करो , फ़ला दिन यह खाओ , फ़ला दिन इस जगह जाओ इत्यादि इत्यादि !!
हमारा मीडिया भी इसके लिए जिम्मेदार है ! आप सभी ने देखा था न की जिस बाबा का मीडिया ने विरोध किया था वही बाबा आज उन्ही चैनलों पर प्रकट हो गए हैं !
एक बाबा तो स्त्री वेश ही धारण कर लिए !!
हमारी सरकारी व्यवस्थाएँ भी आँख मूंदे सब चलने देती हैं ! जब सर के ऊपर से पानी निकल जाता है तब होश में आती हैं !
पर सबसे ज्यादा जिम्मेदारी हमारी अपनी है !!
अब जब भी कोई बाबा सामने आये तो सतर्क रहिएगा !
जैसे ही हम अपने कर्मों का अगर खुद आकलन करने लगेंगे तो इन धर्म के तथाकथित ठेकेदारों से समाज को मुक्ति मिल जाएगी और समाज का स्तर भी सुधर जाएगा !
मेरा मानना है की जो भी राह लोकतंत्र से होकर नहीं गुजरती है , हमें उनसे और उनसे मिलने वाली मंजिलों से बचना चाहिए !!
नौकरी नहीं मिली, नौकरी सही नहीं चल रही, मनचाहा प्रेमी न मिलना, शादी नहीं हुई, शादी में अनबन, संतान का न होना, संतान का अस्वस्थ्य होना , मानसिक स्थिति सही न होना इत्यादि इत्यादि कारण मिलेंगे जिसमे आपको इन बाबा के शरण में जाने के लिए प्रेरित किया जायेगा ! मंदिरों, मस्जिदों , गिरजाघरों और गुरुद्वारों में यह बाबा लोग अत्याधिक पाए जाते हैं !
उनके उपाय भी काफी रोचक होते हैं , जैसे फला दिन यह करो , फ़ला दिन यह खाओ , फ़ला दिन इस जगह जाओ इत्यादि इत्यादि !!
हमारा मीडिया भी इसके लिए जिम्मेदार है ! आप सभी ने देखा था न की जिस बाबा का मीडिया ने विरोध किया था वही बाबा आज उन्ही चैनलों पर प्रकट हो गए हैं !
एक बाबा तो स्त्री वेश ही धारण कर लिए !!
हमारी सरकारी व्यवस्थाएँ भी आँख मूंदे सब चलने देती हैं ! जब सर के ऊपर से पानी निकल जाता है तब होश में आती हैं !
पर सबसे ज्यादा जिम्मेदारी हमारी अपनी है !!
अब जब भी कोई बाबा सामने आये तो सतर्क रहिएगा !
जैसे ही हम अपने कर्मों का अगर खुद आकलन करने लगेंगे तो इन धर्म के तथाकथित ठेकेदारों से समाज को मुक्ति मिल जाएगी और समाज का स्तर भी सुधर जाएगा !
मेरा मानना है की जो भी राह लोकतंत्र से होकर नहीं गुजरती है , हमें उनसे और उनसे मिलने वाली मंजिलों से बचना चाहिए !!
आजादी और स्त्री
जो लोग हमारे देश की आज़ादी पर बहुत ज्यादा इतराते हैं, मैं उनसे निवेदन करूँगा की इतना इतराने से पहले आप अपने घरों में मौजूद स्त्रियों की स्थिति का आकलन जरुर करें !!
घोर सरकार समर्थक
सरकार ने विगत वर्षों में २ज़ी घोटाला , राष्ट्र मंडल खेल घोटाला , कोयला घोटाला, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन घोटाला एवं अन्य भ्रष्टाचार में व्याप्त सभी लोगों से बहुत कड़ाई से निपट कर राजनीतिक मानदंडों का सर्वश्रेष्ठ उदहारण प्रस्तुत किया है ! आप सभी को यह जानकार हर्ष होगा की सभी मुख्य आरोपी सुधारगृह (जेल ) में पहुँचा दिए गए हैं !
उन्होंने हर जगह पिछली सरकारों के सुझाए मानदंडों का अनुसरण किया है !
हमें धन्यवाद देना होगा हमारी राजनीतिक पार्टियाँ को जिन्होंने अपने अनुभव से भारतवर्ष को दुनिया के अग्रिम देशों की पंक्ति में ला कर खड़ा कर दिया है !!
उन्होंने हर जगह पिछली सरकारों के सुझाए मानदंडों का अनुसरण किया है !
हमें धन्यवाद देना होगा हमारी राजनीतिक पार्टियाँ को जिन्होंने अपने अनुभव से भारतवर्ष को दुनिया के अग्रिम देशों की पंक्ति में ला कर खड़ा कर दिया है !!
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दस्तक
दर्द भरे दिल में
खुशियाँ कहाँ दस्तक दे पाएंगी !
आएंगी खुशियाँ तो
दर्द तले दब जाएंगी !!
;) इसलिए दर्द को दिल से जितनी जल्दी हो निकाल दो !!
खुशियाँ कहाँ दस्तक दे पाएंगी !
आएंगी खुशियाँ तो
दर्द तले दब जाएंगी !!
;) इसलिए दर्द को दिल से जितनी जल्दी हो निकाल दो !!
भ्रष्टाचार
जब हम भ्रष्टाचार को जीवन में आम बात मानने लगते हैं तो उसके दुस्परिणाम को भी अपनाना होगा । आज नहीं तो कल बिहार के उन परिवारों जिसने अपने बच्चे खोए हैं की जगह आपका-हमारा परिवार भी हो सकता है । नींद तो हमें आ जाएगी पर उन परिवारों को हमेशा उनके बच्चों की कमी कचोटती रहेगी ।
उत्तराखंड के दोस्तों से मेरी अपील
पिछले कई दिनों से उत्तराखंड में फंसे लोगों को जल्द से जल्द राहत पहुँचाने और वहाँ से निकालने के लिए सेना के जवान युद्धस्तर पर लगे हुए हैं । उत्तराखंड के दोस्तों से मेरी अपील है की आप लोग जितना हो सके त्रासदी में फंसे लोगों की मदद करें ।
बाल श्रम
दोस्तों,
आज बाल श्रम मुक्त विश्व दिवस है।
हमें अपने दैनिक जीवन में अक्सर अपने इर्दगिर्द छोटे बच्चे श्रम/मजदूरी करते हुए या भीख माँगते हुए दिख जाते हैं । कभी मैं उनको अनदेखा कर देता हूँ , कभी उन बच्चों के साथ बात करके उनको पढ़ने के लिए प्रेरित करता हूँ, कभी उनकी स्थिति को चुपचाप तमाशबीन की तरह देखते हुए अपनी लाचारी को कोसता हूँ ।
हाँ! एक बात और, दुःख होता है जब कई पढ़े लिखे, समृद्ध लोग भी अपने यहाँ बालश्रम करवाते हैं, और ऐसा जब अपने प्रिय दोस्तों के यहाँ देखता हूँ तो मन और भी खिन्न हो जाता है।
जब कभी इस मुद्दे पर अपने साथियों में बहस चलती है तो अक्सर ऐसे अनेकों तर्क सामने आते हैं - की उनकी किस्मत ही ऐसी है , उनके पिछले जनम के पाप है या उनके अभिभावक के कर्म इसके लिए जिम्मेदार हैं ।
कभी - कभी यह तर्क भी आता है की मुसलिमों ने अपनी आबादी बढाई है, अमुक की वजह से बालश्रम बढ़ा है। जिस वजह से हिन्दुओं को भी अपनी आबादी बढ़ाना चाहिए, या ठीक इसका विपरीत ।
मेरा मन कभी भी इन तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ । मैं हमेशा यही मनाता हूँ की हम एक लोकतंत्र व्यवस्था में रहते हैं और एक अच्छे लोकतंत्र में सभी को सम्मान से जीने के लिए आवश्यक व्यवस्थाओं का पूर्ण परिपालन होना बहुत महत्वपूर्ण है । बच्चे हमारे देश की निधि हैं । बाल श्रम इस निधि को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचाता है ।
जिस युवा वर्ग के बढ़ते अनुपात पर हम अभी गर्व करते हैं, यही वर्ग अगर अशिक्षित रह गया तो भविष्य में यही वर्ग आगे जाकर देश की प्रगति में बाधा बनेगा । उदहारण के लिए आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे की गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अधिकांश अशिक्षित ही होते होते हैं , नक्सलवाद में अधिकांश अशिक्षित युवा ही शामिल होता है ।
हमारे देश के लोकतंत्र व्यवस्थाओं में उच्च पदों पर आसीन लोगों को बालश्रम की समस्या पर गंभीर विश्लेषण करना होगा । लोकतंत्र में बाल निधि किसमत या किसी धर्मविशेष के आधीन नहीं होनी चाहिए, अपितु ऐसी उचित और कारगर व्यवस्थाएं , जो बाल निधि की दिशा और दशा सुधारे, के अंतर्गत होनी चाहिए ।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा की हर बच्चा कम से कम बारहवीं तक बिना बालश्रम किये पढ़े । गरीब और अनाथ बच्चों की शिक्षा के लिए और कारगर व्यवस्थाएं बनें । हमारे सालाना वित्तीय बजट में इन व्यवस्थाओं के लिए उचित धन आवंटित हो और समय समय पर इन व्यवस्थाओं का आकलन हो ।
निजी स्तर पर हमें देखना होगा की हमारे घर, परिवार और आसपास के सभी बच्चे पढ़ाई करें,क्योंकि शिक्षा से ही बालक को उसके जीवन को सही ढंग से जीने की राह मिलती है, और कोई बाल मजदूरी न करवाए । बाल विकास मे लगे सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं और उनके कार्यक्रमों से परिचित हों । संभव हो सके तो किसी एक गरीब बच्चे की पढाई पूर्ण करने में यथासंभव मदद करें ।
कुछ सम्बंधित लिंक :
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/06/130612_ilo_child_labourers_ap.shtml
http://www.ilo.org/ipec/Campaignandadvocacy/WDACL/lang--en/index.htm
http://www.ilo.org/ipec/Regionsandcountries/Asia/India/WCMS_203644/lang--en/index.htm
भारत में बालश्रम की स्थिति : http://en.wikipedia.org/wiki/Child_labour_in_India
इस विषय पर मेरा एक पुराना ब्लाग पोस्ट : http://aapkamanoj.blogspot.in/2010/12/blog-post.html
---
आपका
मनोज
आज बाल श्रम मुक्त विश्व दिवस है।
हमें अपने दैनिक जीवन में अक्सर अपने इर्दगिर्द छोटे बच्चे श्रम/मजदूरी करते हुए या भीख माँगते हुए दिख जाते हैं । कभी मैं उनको अनदेखा कर देता हूँ , कभी उन बच्चों के साथ बात करके उनको पढ़ने के लिए प्रेरित करता हूँ, कभी उनकी स्थिति को चुपचाप तमाशबीन की तरह देखते हुए अपनी लाचारी को कोसता हूँ ।
हाँ! एक बात और, दुःख होता है जब कई पढ़े लिखे, समृद्ध लोग भी अपने यहाँ बालश्रम करवाते हैं, और ऐसा जब अपने प्रिय दोस्तों के यहाँ देखता हूँ तो मन और भी खिन्न हो जाता है।
जब कभी इस मुद्दे पर अपने साथियों में बहस चलती है तो अक्सर ऐसे अनेकों तर्क सामने आते हैं - की उनकी किस्मत ही ऐसी है , उनके पिछले जनम के पाप है या उनके अभिभावक के कर्म इसके लिए जिम्मेदार हैं ।
कभी - कभी यह तर्क भी आता है की मुसलिमों ने अपनी आबादी बढाई है, अमुक की वजह से बालश्रम बढ़ा है। जिस वजह से हिन्दुओं को भी अपनी आबादी बढ़ाना चाहिए, या ठीक इसका विपरीत ।
मेरा मन कभी भी इन तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ । मैं हमेशा यही मनाता हूँ की हम एक लोकतंत्र व्यवस्था में रहते हैं और एक अच्छे लोकतंत्र में सभी को सम्मान से जीने के लिए आवश्यक व्यवस्थाओं का पूर्ण परिपालन होना बहुत महत्वपूर्ण है । बच्चे हमारे देश की निधि हैं । बाल श्रम इस निधि को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचाता है ।
जिस युवा वर्ग के बढ़ते अनुपात पर हम अभी गर्व करते हैं, यही वर्ग अगर अशिक्षित रह गया तो भविष्य में यही वर्ग आगे जाकर देश की प्रगति में बाधा बनेगा । उदहारण के लिए आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे की गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अधिकांश अशिक्षित ही होते होते हैं , नक्सलवाद में अधिकांश अशिक्षित युवा ही शामिल होता है ।
हमारे देश के लोकतंत्र व्यवस्थाओं में उच्च पदों पर आसीन लोगों को बालश्रम की समस्या पर गंभीर विश्लेषण करना होगा । लोकतंत्र में बाल निधि किसमत या किसी धर्मविशेष के आधीन नहीं होनी चाहिए, अपितु ऐसी उचित और कारगर व्यवस्थाएं , जो बाल निधि की दिशा और दशा सुधारे, के अंतर्गत होनी चाहिए ।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा की हर बच्चा कम से कम बारहवीं तक बिना बालश्रम किये पढ़े । गरीब और अनाथ बच्चों की शिक्षा के लिए और कारगर व्यवस्थाएं बनें । हमारे सालाना वित्तीय बजट में इन व्यवस्थाओं के लिए उचित धन आवंटित हो और समय समय पर इन व्यवस्थाओं का आकलन हो ।
निजी स्तर पर हमें देखना होगा की हमारे घर, परिवार और आसपास के सभी बच्चे पढ़ाई करें,क्योंकि शिक्षा से ही बालक को उसके जीवन को सही ढंग से जीने की राह मिलती है, और कोई बाल मजदूरी न करवाए । बाल विकास मे लगे सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं और उनके कार्यक्रमों से परिचित हों । संभव हो सके तो किसी एक गरीब बच्चे की पढाई पूर्ण करने में यथासंभव मदद करें ।
कुछ सम्बंधित लिंक :
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/06/130612_ilo_child_labourers_ap.shtml
http://www.ilo.org/ipec/Campaignandadvocacy/WDACL/lang--en/index.htm
http://www.ilo.org/ipec/Regionsandcountries/Asia/India/WCMS_203644/lang--en/index.htm
भारत में बालश्रम की स्थिति : http://en.wikipedia.org/wiki/Child_labour_in_India
इस विषय पर मेरा एक पुराना ब्लाग पोस्ट : http://aapkamanoj.blogspot.in/2010/12/blog-post.html
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आपका
मनोज
आज का भारत
आज का भारत खुले खेत, खलियान और बागीचों से कहीं दूर, न्यूनतम सुविधाओं में गुजर-बसर करते हुए, अपने संतानों के उज्जवल भविष्य के लिए जद्दोजहद करते हुए, महानगरों की तंग गलियों में बसता है |
जिंदगी
पिछले सफ़र में कई जिन्दगीयों से मिला !
सम्मान से चलने वाली !
अभिमान से चलने वाली !
धमक से चलने वाली !
चमक से चलने वाली !
लाचारी से चलने वाली !
दुस्वरियों से चलने वाली !
सीट के नीचे सोने वाली !
पैरों तले बैठे सफ़र करने वाली !
भीख से चलने वाली !
पानी के लिए भटकने वाली !
बैलगाड़ी से चलने वाली !
सड़क पर चलने वाली !
रेल में चलने वाली !
हवा में चलने वाली !
जिंदगी !!
क्या ६० बरस हो गए हैं हमें आज़ाद हुए ?
वो बांद्रा पूर्व लोकल टिकट खिड़की के नीचे बैठी भीख मांगती नन्ही बच्ची की तस्वीर मेरे दिमाग में बार बार आ रही है !
मन में बस यही सवाल है : क्या ६० बरस हो गए हैं हमें आज़ाद हुए ?
टर टर टर
टर टर टर !
पढाए जो वो है मास्टर !!
टर टर टर !
इलाज जो करे वो है डाक्टर !!
टर टर टर !
चोर जो पकडे वो है इंस्पेक्टर !!
टर टर टर !
टिकट जो काटे वो है कंडक्टर !!
टर टर टर !
फिल्म जो बनाये वो है डायरेक्टर !!
टर टर टर !
जिला जो संभाले वो है कलक्टर !!
बिल्लो रानी
विगत दिसंबर माह के पहले हफ्ते में एक बिल्ली ने हमारे घर ( किराये का ) को अपना आशियाना बनाया ! पहले दिन मैंने उसको घर के हाल में फ्रीज़ के बगल में विराजमान पाया ! उस समय मैंने उसे पानी डाल कर भगा दिया ! अगले दिन झाड़ू पोछा करने वाली बाई रिहाना की नजर फ्रीज़ के बगल में रखे हुए पुराने लकड़ी के बक्से में बिल्ली और उसके तीन बच्चों पर गई !! वो हम पर बहुत हँसी ! असल में मेरा घर तीसरी मंजिल पर है !! कुछ खिड़कियाँ टूटी फूटी हैं !
बरहाल जो भी हो बिल्लो रानी को हमारा घर पसंद आ गया था सो उसने बुलंद भाव से अपने नवजात बच्चों के साथ अपना डेरा फ्रीज़ के बगल में रखे उस बक्से में जमा लिया ! हमारा घर अक्सर खाली रहता है ! अतः उसके लिए इससे बेहतरीन और सुरक्षित जगह कोई और हो ही नहीं सकती थी !
शुरुआत में मुझे अच्छा नहीं लगा ! मैंने अपने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा दिए की कैसे बिल्लो रानी से मुक्ति पाई जाए ! जब भी फ्रीज़ खोलूँ तो बिल्लो मैडम बक्से में से उतरकर निरीक्षण करने के लिए अवतरित हो जाती !
मैंने जानबूझ कर वो खिड़की खोल दी जिससे बिल्लो रानी आती जाती थी ! एकबार बिल्लो रानी की गैर मौजूदगी में मैंने सोचा की यह बेहतरीन मौका है बिल्लो रानी के बच्चों को बाहर बालकनी में कर देता हूँ ! बक्से के अन्दर बेफिक्र बच्चों पर नजर गई तो मेरा इरादा बदल गया ! असल में बाहर ठण्ड काफी थी और बिल्लो रानी के बच्चे अभी काफी छोटे और कमजोर थे और उनकी आँखे अभी खुली नहीं थी ! मेरी हिम्मत न हुई उनको बाहर बालकनी में रखने की ! मैं घर में अपने साथीयों को अपनी बच्चों को बाहर निकालने की योजना तो बताता पर उस अमल नहीं करता ! दरअसल उन सभी को मेरे हाव-भाव से मालूम हो गया था की मैं जो कह रहा हूँ वो मैं करने वाला नहीं हूँ ! मेरे अन्दर अब बिल्लो रानी के प्रति कोई द्वेष न था और ना कोई डर ! हाँ, एक बात जरुर मैंने बिल्लो रानी और उसके बच्चों को कभी कुछ खाने को नहीं दिया ! मैं उनके नैसर्गिक गुण को कोई नुक्सान नहीं पहुँचाना चाहता हूँ !
बिल्लो रानी ने धीरे धीरे मुझसे दोस्ती करना शुरू कर दिया ! जब भी मैं घर के अन्दर या बाहर निकलूँ तो बिल्लो रानी मेरे पास आती और अपने शरीर से मेरे दाएं और बाएं पैर को रगड़ती और अपना प्यार जताती ! समय के साथ मेरा भी डर छूमंतर हो गया ! मैं भी बिल्लो रानी की पीठ पर और माथे पर अपनी हथेलियाँ फेरने लगा ! बिल्लो रानी को मेरा यह अंदाज इतना पसंद आता की वो अपनी ख़ुशी फर्श पर उलट-पलट करा बताती !
जनवरी में एक दिन मैंने देखा की बिल्लो रानी और उसके बच्चों ने घर के रसोईं में रहने का मन बना लिया है ! अब बच्चे काफी प्यारे,स्वस्थ्य और नटखट दिख रहे थे ! अब वो बक्से वाला संसार उनके लिए छोटा हो गया था ! ठण्ड भी थोड़ी कम हो गई थी ! अब मैंने मौका देखकर बच्चों को बालकनी में रख दिया और खिड़की को बंद कर दिया !
यह सब करने के बाद मन थोडा व्याकुल हुआ ! मैं बार बार झाँक कर देखता की बिल्लो रानी और बच्चे कैसे हैं, क्या कर रहे हैं ! पर अब उनको अन्दर रखना भी उचित न था ! घर मैं जो भी पुराना कपड़ा और गद्दा मिला वो मैंने बालकनी में रख दिया ! सोचा यह कपडे ठण्ड से थोड़ी राहत देंगे !
बिल्लो रानी ने सोचा की वह अपने बच्चों को कहीं और ले जाए पर ऊंचाई कुछ ज्यादा है और बालकनी भी उसको पसंद आ गई आखिर कोई किराया जो न देना था ;) !!
बालकनी में जाने के बाद 1-2 दिन मुझसे बिल्लो रानी नाराज रही ! कोने में अपने बच्चों के साथ बैठे-बैठे गुर्रा कर अपने गुस्से का इजहार करती ! मैं भी ज्यादा भाव नहीं देता उसको ! मुझे लगा की वो अब चली जायेगी क्योंकि सब कहते की बिल्ली घर बदलती रहती हैं, पर ऐसा हुआ नहीं ! पाँच - छह दिन में बिल्लो रानी को बालकनी भा गई ! उसके बच्चे भी बहुत शरारती हो गए और आपस मैं खूब खेलते हैं अब ! बच्चों का सबसे पसंदीदा खिलौना बिल्लो रानी की पूंछ है ! बच्चे कभी कभी खिड़की पर बाहर से अन्दर की और आने का प्रयास करते हैं !
अब रोज सुबह शाम बिल्लो रानी और उसके बच्चों के साथ कुछ पल बिताना मेरा नियम बन गया है ! रोज शाम को घर मैं प्रवेश करते ही बालकनी की तरफ रुख करता हूँ ! बिल्लो रानी और बच्चों से मिलता हूँ ! उनसे संवाद करने की कोशिश करता हूँ ! शायद मैं ही बच्चा हो गया हूँ !
फ़रवरी:
जनवरी बीत गया ! बिल्लो रानी के बच्चे अब तंदरुस्त हो गए हैं ! बिल्लो रानी उनको खेल खेल में कई दाँव पेच सिखा रही है और दूध पिलाने के अलावा छोटे छोटे मांस के टुकड़े ला कर बच्चों को नए नए स्वाद चखा रही है !
एक दिन सुबह बिल्लो रानी और उसका एक बच्चा बालकनी में नहीं दिखा ! मुझे लगा की कहीं वो गिर न गया हो ! थोड़ी देर ढूंढने के बाद पता चला की वो शरारती बच्चा नीचे वाले फ्लेट में मेहमाननवाज़ी फरमा रहा है ! बिल्लो रानी ने व्याकुलता भरी नज़रों से मुझे देखा ! उसके बच्चे को मैं अपनी बालकनी में ले आया !!
15 फ़रवरी 2013
10 से 13 तक ऑफिस के कार्य हेतु में दिल्ली गया था ! 13 की देर रात मे जब घर आया तो बालकनी सुनसान पाया ! मैंने एक दो बार बिल्लो रानी को पुकारा, कोई फायदा न हुआ ! थोड़ी निराशा हुई , ख़ुशी भी हुई की बिल्लो के बच्चे अब सक्षम हो गए थे !
आज सुबह में चाय पीने बाहर निकला ही था की परिसर गेट के पास बिल्लो रानी घुमती हुई मिली ! मैंने उसे बड़े प्यार से बुलाया ! वह रुकी और मेरी ओर मुड़कर देखा ! उसको देखकर मुझे कितनी ख़ुशी उसका शब्दों में लिखना नामुमकिन है ! उसको थोडा पुचकार कर , थोड़ी थप-थपी दे कर मैं चाय पीने चला गया !!
चाय पीकर जब मैं घर आया तो बालकनी में कुछ आवाज सुनाई दी ! जाकर देखा, बिल्लो रानी और उसके दो बच्चे खेल रहे थे ! मुझे बहुत हैरानी और ख़ुशी हुई ! मैं मन ही मन बिल्लो रानी को धन्यवाद दे रहा था ! एक बच्चा नहीं था ! बिल्लो रानी उसको ले कर व्याकुल थी , फिर भी मैं संतुष्ट था की वो भी आ जायेगा !
17 फ़रवरी 2013
बिल्लो रानी इस दुनिया में न रही !
कल शाम को मैं घर से बाहर गया था ! आज सुबह मेरे साथी ने मुझे फोन कर के यह दुखद खबर दी ! मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की बिल्लो रानी इस तरह दुनिया से रुखसत कर जाएगी ! अभी तो उसके बच्चों ने ठीक से म्याऊँ म्याऊं करना भी नहीं सीखा था ! शाम को जब घर की तरफ बढ़ रहा था तो मन बहुत उदास था ! बालकनी में पहुँचा तो पाया की केवल एक बच्चा कूं कूं करते हुए एक कोने में बैठा था ! साथी ने बताया की एक बच्चे को एक महिला ले गई ! तीसरे का कोई अता पता नहीं चला !
अब उस बच्चे को अकेले इधर उधर अपनी माँ और भाई बहनो को तलाशते देख मुझे बहुत दुःख हो रहा था ! बहुत भूखा था वो बच्चा ! उसको कूं कूं करते हुए सुबह से शाम हो गई थी ! रात को बाहर खाने के बाद लौटते हुए हमने दुकान से आधा लीटर दूध और एक छोटी तश्तरी ख़रीदा ! दूध को थोडा गरम कर बिल्लो रानी के बच्चे को तश्तरी में डाल कर दिया ! पहले वो थोड़ा संकुचाया बाद मे उसने दूध जी भर कर पिया ! मैंने कभी इस दिन की कल्पना न की थी ! मुझे विश्वास था की बिल्लो रानी और उसके बच्चों को कभी मुझे दूध देने की जरुरत न पड़ेगी ! पर नियति को कुछ और ही मंजूर था !
मेरा स्नेह पा कर बिल्लो रानी के उस अकेले बच्चे को मामूली राहत मिली ! वो बाहर वाली खिड़की पर बैठ कर कूं कूं करते हुए अपने परिवार का इंतजार करता रहा !
मैं बार बार उठ कर जाता ! उस बच्चे के साथ थोडा वक्त बिताता , उसको सहलाता और थोडा दूध हल्का गरम कर के दे देता ! पेट भर जाने के बाद उसको नींद आ गई और हमको उसके कूं कूं से थोड़ी मुक्ति मिली !
सोते हुए यही सोच रहा था की बिल्लो रानी और उसके बच्चों को भगवान् ने इस विपत्ति में क्यों डाला ! बहुत गुस्सा आया मुझे भगवान् और अपने ऊपर !
18 फ़रवरी 2013
रात भर वो बाहर वाली खिड़की पर बैठ कर कूं कूं करते हुए अपने परिवार का इंतजार करता रहा ! सुबह उठ कर सबसे पहले मैंने उसको थोडा दूध दिया ! कल रात में एक कालोनी की एक महिला ने मुझसे बिल्लो रानी का बच्चा माँगा था ! मैंने उसको आज रात साढ़े आठ बजे मिलने को कहा था ! मन तो नहीं है देने का पर दे दूंगा ! उस बच्चे को जितना देखूंगा मुझे बिल्लो रानी की उतनी ही याद आएगी !
फर्जी के कंपटीसन से भरी दुनिया में मेरे मन के भावों के लिए कोई जगह नहीं है ! लिख कर ही अपने आप को झूठी तस्सली दे देता हूँ !
कभी कभी मुझे भी अपनी दशा पर हँसी आ जाती है ! पर हो जाता है यह सब ! जीवन में कुछ घटनाएँ हो जाती हैं कभी कभी जिनपर आपका कोई नियंत्रण नहीं रहता !
जो भी हो मुझे तो बस चलते जाना है ......
जो भी हो मुझे तो बस चलते जाना है ......
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