जिंदगी ने मुझसे कुछ इस तरह मुँह मोड़ा

मुझे पता नहीं था कि इन पंक्तियों को लिखने के बाद इसमें छिपे सवाल का जवाब इतनी जल्दी मिल जायेगा |
मुझे जवाब बहुत पसंद आया |

वक़्त के थपेड़ों ने मुझको कुछ इस तरह निचोड़ा |
जब-जब मैंने किसी परी से दिल जोड़ा |
या तो उसने ,या मैंने , शहर छोड़ा |

कभी जात , कभी औकात बना रोड़ा |
वक़्त के थपेड़ों ने  मुझको कुछ इस तरह निचोड़ा |
जिंदगी ने मुझसे कुछ इस तरह मुँह मोड़ा |
जिंदगी ने मुझसे कुछ इस तरह मुँह मोड़ा | ;)




जवाब  गुरुदेव  कि इस कविता में मिला :
मैं अनेक वासनाओं को चाहता हूँ प्राणपण से

-- आपका मनोज :)

बूढ़ा बचपन

बूढ़ा बचपन !!


"तेरी बरात को रोशन कर रहा हूँ मैं |
अपने बचपन को कुछ इस तरह खो रहा हूँ मैं  | "

यह चित्र अपने कैमरे में लेते समय मुझे बहुत ख़राब लगा | मन में यही प्रश्न था कि मैं क्यों नहीं इतना समर्थ हूँ कि यह तस्वीर बदल सकूं ?
क्या करूँ जिससे हमारे इन नन्हे दोस्तों का बचपन बूढ़ा न हो जाए ?

-- आशावान मुसाफिर   
 -- आपका मनोज